शिक्षक दिवस के महत्व -
************************
भारत में प्राचीन काल से ही गुरु - शिष्य की परंपरा का बहुत अधिक महत्व रहा है। हमारी संस्कृति के निर्माण में गुरु -शिष्य परंपरा का बहुत अधिक योगदान है।मानव के जीवन निर्माण के सभी स्तंभों में शिक्षक सबसे महत्वपूर्ण स्तंभ है।
इसलिए ही कहा जाता है कि -
गुरु ब्रह्मा गुरु विष्णु गुरु देवो महेश्वर:।
गुरु साक्षात् परब्रह्म तस्मै श्री गुरुवे नमः।।
शिक्षक अपने शिष्य के जीवन के साथ -साथ उसके चरित्र निर्माण में भी एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। कहा जाता है कि इंसान की सबसे पहली गुरु उसकी मां होती है, जो अपने बच्चों को जीवन प्रदान करने के साथ -साथ जीवन के आधार का ज्ञान भी देती है। इसके बाद अन्य शिक्षकों का स्थान होता है। किसी व्यक्ति के व्यक्तित्व का निर्माण करना बहुत ही विशाल और कठिन कार्य है। व्यक्ति को शिक्षा प्रदान करने के साथ -साथ उसके चरित्र और व्यक्तित्व का निर्माण करना उसी प्रकार का कार्य है, जैसे "कोई कुम्हार मिट्टी से बर्तन बनाने का कार्य करता है।इसी प्रकार शिक्षक अपने छात्रों को शिक्षा प्रदान करने के साथ -साथ उसके व्यक्तित्व का निर्माण भी करते हैं।"
इसलिए ही कबीर कहते हैं -
गुरु कुम्हार शिष कुंभ है,गढि-गढि काढै खोट।
अन्तर हाथ सहार दै, बाहर बाहै चोट।।
इस दोहे का अर्थ यह है कि शिक्षक उस कुम्हार की तरह है जो अपने छात्र रूपी घड़े की कमियों को दूर करने के लिए भीतर से हाथ का सहारा देकर बाहर से चोट करता है। ठीक इसी तरह शिक्षक भी कभी -कभी छात्रों पर क्रोध करके भी छात्रों का चरित्र का निर्माण करते है तथा छात्रों को बेहतर मार्गदर्शन प्रदान करते हैं।
कबीरदास यह कहते है कि -
"सब धरती कागज़ करूं,लिखनी सब बनराय।
सात समुद्र की मसि करूं, गुरु गुण लिखा न जाय ।।"
इसका अर्थ यह है कि यदि सम्पूर्ण पृथ्वी को कागज़ के रूप में परिवर्तित कर दिया जाए, साथ ही सातों समुद्र की स्याही बना ली जाए और क्यों न सभी जंगलों की कलम भी बना ली जाए, लेकिन इसके बावजूद भी शिक्षक की महिमा का संपूर्ण गुणगान किया जा सके,यह मुमकिन नहीं है।
शिक्षक दिवस का इतिहास -
***************************
शिक्षक दिवस का आरंभ 1962 में डा सर्वपल्ली राधाकृष्णन के सम्मान में हुआ था।एक बार उनके छात्रों और मित्रों ने उनसे उनकी जयंती मनाने की इच्छा व्यक्त की।डा सर्वपल्ली राधाकृष्णन ने विनम्रता से उतर दिया कि उनके जन्मदिन को शिक्षक दिवस के रूप में मनाया जाए, ताकि सभी शिक्षकों को सम्मानित किया जा सके। इस प्रकार 5 सितंबर को शिक्षक दिवस के रूप में मनाने की परंपरा आरंभ हुई।
शिक्षक दिवस का महत्व -
*************************
शिक्षक दिवस केवल एक सामान्य उत्सव नहीं है, बल्कि यह शिक्षकों के प्रति कृतज्ञता और सम्मान व्यक्त करने का एक विशेष अवसर है। यह दिन शिक्षकों के अद्वितीय योगदान को सराहने का होता है, जिन्होंने समाज को दिशा दी और अनेक पीढ़ियों को शिक्षित किया। इस दिन स्कूल, कालेज और अन्य शैक्षिक संस्थान विशेष कार्यक्रम आयोजित करते हैं, जहां छात्र अपने शिक्षकों के प्रति सम्मान व्यक्त करते हैं।
"गुरु गोविंद दोऊ खड़े काके लागूं पाय।
बलिहारी गुरु आपने गोविंद दियो बताय।।"
शिक्षकों का महत्व हमारे जीवन में बहुत अधिक है।वे हमारे जीवन को सुधारने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। शिक्षक हमें सही और ग़लत के बीच का अंतर सिखाते हैं,जो हमें जीवन में सही रास्ते पर चलने में मदद करता है। वे हमें भविष्य के लिए तैयार करते हैं जिससे हम अपने लक्ष्यों को प्राप्त कर सकते हैं।वे हमें अपने जीवन को सुधारने में मदद करते हैं और हमें एक अच्छा इंसान बनाते हैं।
शिक्षक दिवस हमारे जीवन में शिक्षकों के योगदान को सराहने और उनका सम्मान करने का एक महत्वपूर्ण अवसर है। शिक्षक समाज के स्तंभ होते हैं,जो आनेवाली पीढ़ियों को ज्ञान और नैतिकता का पाठ पढ़ाते हैं। शिक्षक दिवस हमें याद दिलाता है कि हमें अपने शिक्षकों का सम्मान करना चाहिए और उनके योगदान को कभी नहीं भूलना चाहिए।
शिक्षा की इस यात्रा में शिक्षक ही वे दीपक हैं जो हमें अज्ञानता के अंधकार से निकालकर ज्ञान की रोशनी में ले जाते है। शिक्षक दिवस न केवल शिक्षकों को सम्मानित करने का दिन है, बल्कि यह हमें उनके प्रति कृतज्ञता व्यक्त करने का भी एक अवसर प्रदान करता है। इस दिन हम सभी को अपने शिक्षकों को उनके अथक प्रयासों के लिए धन्यवाद कहना चाहिए और उनके द्वारा दी गई सीख को अपने जीवन में अपनाना चाहिए।
शिक्षक दिवस हमें यह सिखाता है कि एक शिक्षक का जीवन में क्या महत्व होता है और हमें उनके प्रति हमेशा कृतज्ञ रहना चाहिए।
डॉ. राजेश्वरी बसवराज मेदार
हिंदी विषय शिक्षिका
कर्नाटक।